जैन धर्म | जैन धर्म का इतिहास | जैन धर्म का सामान्‍य ज्ञान | Jain Dharm MOCK TEST

जैन धर्म जैन धर्म का इतिहास | जैन धर्म का सामान्‍य ज्ञान

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जैन धर्म | जैन धर्म का इतिहास | जैन धर्म का सामान्‍य ज्ञान

हेलो दोस्‍तों,

Studyfundaaa द्वारा आप सभी को प्रतिदिन प्रतियोगी परीक्षाओं से सम्बंधित जानकारी Share की जाती है. जैसा कि हम सभी जानते हैं कि प्रत्‍येक Competitive Exams में सामान्‍य ज्ञान से सम्बंधित प्रश्न पूछे जाते हैं. आज इस पोस्ट में हम आपके समक्ष जो जानकारी share कर रहे हैं वह जैन धर्म | जैन धर्म का इतिहास | जैन धर्म का सामान्‍य ज्ञान की है. यह पोस्ट विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्रों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। 

जैन धर्म | जैन धर्म का इतिहास | जैन धर्म का सामान्‍य ज्ञान | Jain Dharm MOCK TEST

महावीर से जुड़े महत्‍वपूर्ण तथ्‍य (Mahaveer se jude important facts in hindi)

जैन धर्म का परिचय (Jain Dharm ka Introduction)

जैन धर्म भारत की श्रमण परम्परा से निकला धर्म और दर्शन है। 'जैन' उन्हें कहते हैं, जो 'जिन' के अनुयायी हों। 'जिन' शब्द बना है 'जि' धातु से। 'जि' यानी जीतना। 'जिन' अर्थात् जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया, वे हैं 'जिन'। जैन धर्म अर्थात् 'जिन' भगवान का धर्म। वस्त्र-हीन बदन, शुद्ध शाकाहारी भोजन और निर्मल वाणी एक जैन-अनुयायी की पहली पहचान है। यहाँ तक कि जैन धर्म (Jain dharm in hindi) के अन्य लोग भी शुद्ध शाकाहारी भोजन ही ग्रहण करते हैं तथा अपने धर्म के प्रति बड़े सचेत रहते हैं। (jain dharm ka parichay)

अहिंसा जैन धर्म का मूल सिद्धान्त है। इसे बड़ी सख्ती से पालन किया जाता है खानपान आचार नियम मे विशेष रुप से देखा जा सकता है‌। जैन दर्शन में कण कण स्वतंत्र है इस सॄष्टि का या किसी जीव का कोई कर्ताधर्ता नही है। सभी जीव अपने अपने कर्मों का फल भोगते है। जैन दर्शन में भगवान न कर्ता और न ही भोक्ता माने जाते हैं। जैन दर्शन मे सृष्टिकर्ता को कोई स्थान नहीं दिया गया है। जैन धर्म में अनेक शासन देवी-देवता हैं पर उनकी आराधना को कोई विशेष महत्व नहीं दिया जाता। जैन धर्म में तीर्थंकरों जिन्हें जिनदेव, जिनेन्द्र या वीतराग भगवान कहा जाता है इनकी आराधना का ही विशेष महत्व है। इन्हीं तीर्थंकरों का अनुसरण कर आत्मबोध, ज्ञान और तन और मन पर विजय पाने का प्रयास किया जाता है। jain dharm gk in hindi

धर्म के तीर्थंकर एवं उनके प्रतीक चिन्‍ह (Jain Dharm ke tiranthkar)

जैन धर्म मे 24 तीर्थंकरों को माना जाता है। तीर्थंकर धर्म तीर्थ का प्रवर्तन करते है। इस काल के 24 तीर्थंकर है- (jain dharm ka pratik chinh)

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जैन धर्म के सात तत्त्व (Jain Dharm ke 7 Tatva)

जैन ग्रंथों में सात तत्त्वों का वर्णन मिलता हैं। यह हैं-

1.   जीव- जैन दर्शन में आत्मा के लिए "जीव" शब्द का प्रयोग किया गया हैं। आत्मा द्रव्य जो चैतन्यस्वरुप है

2.   बन्ध- आत्मा से कर्म बन्धना

3.   संवर- कर्म बन्ध को रोकना

4.   निर्जरा- कर्मों को क्षय करना

5.   आस्रव - पुद्गल कर्मों का आस्रव करना

6.   मोक्ष - जीवन व मरण के चक्र से मुक्ति को मोक्ष कहते हैं।

7.   अजीव- जड़ या की अचेतन द्रव्य को अजीव (पुद्गल) कहा जाता है।

जैन धर्म के पॉंच महाव्रत (jain dharm ke panch mahavrat)

जैन धर्म में श्रावक और मुनि दोनों के लिए पाँच व्रत बताए गए है। तीर्थंकर आदि महापुरुष जिनका पालन करते है, वह महाव्रत कहलाते है -

1.   अहिंसा - किसी भी जीव को मन, वचन, काय से पीड़ा नहीं पहुँचाना। किसी जीव के प्राणों का घात नहीं करना।

2.   सत्य - हित, मित, प्रिय वचन बोलना।

3.   अस्तेय - बिना दी हुई वस्तु को ग्रहण नहीं करना।

4.   ब्रह्मचर्य - मन, वचन, काय से मैथुन कर्म का त्याग करना।

5.   अपरिग्रह- पदार्थों के प्रति ममत्वरूप परिणमन का बुद्धिपूर्वक त्याग।

मुनि इन व्रतों का सूक्ष्म रूप से पालन करते है, वही श्रावक स्थूल रूप से करते है।

जैन धर्म के नौ पदार्थ (jain dharm ke 9 padarth)

जैन ग्रंथों के अनुसार जीव और अजीव, यह दो मुख्य पदार्थ हैं।आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा, मोक्ष, पुण्य, पाप अजीव द्रव्य के भेद हैं।

जैन धर्म के छह द्रव्य (Jain Dharm ke 6‍ Dravya)

जैन धर्म के अनुसार लोक 6 द्रव्यों (substance) से बना है। यह 6 द्रव्य शाश्वत हैं अर्थात इनको बनाया या मिटाया नहीं जा सकता। यह है जीव, पुद्गल, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाश और काल।

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जैन धर्म के त्रिरत्‍न (jain dharm ke 3 ratan)

1.      सम्यक् दर्शन - सम्यक् दर्शन को प्रगताने के लिए तत्त्व निर्णय की साधना करनी चहिये | तत्त्व निर्णय - मै इस शरीर आदि से भिन्न एक अखंड अविनाशी चैतन्य तत्त्व भगवान आत्मा हू, यह शरीरादी मै नहीं और यह मेरे नहीं ।

2.      सम्यक् ज्ञान - सम्यक ज्ञान प्रगताने के लिए भेद ज्ञान की साधना करनी चहिये | भेद ज्ञान - जिस जीव का, जिस दृव्य का जिस समय जो कुछ भी होना है, वह उसकी तत्समय की योग्यतानुसार हो रहा है और होगा। उसे कोई ताल फेर बदल सकता नहीं। (bhagwan mahaveer in hindi)

3.      सम्यक् चारित्र - सम्यक चारित्र की साधना के लिए वस्तु स्वरुप की साधना करना चहिये। सम्यक चरित्र का तात्पर्य नैतिक आचरण से है। पंचमहाव्रत का पालन ही शिक्षा है जो चरित्र निर्माण करती है|

यह रत्नत्रय आत्मा को छोड़कर अन्य किसी द्रव्य में नहीं रहता। सम्यक्त्व के आठ अंग है - निःशंकितत्त्व, निःकांक्षितत्त्व, निर्विचिकित्सत्त्व, अमूढदृष्टित्व, उपबृंहन / उपगूहन, स्थितिकरण, प्रभावना, वात्सल्य।

चार कषाय

क्रोध, मान, माया, लोभ यह चार कषाय है जिनके कारण कर्मों का आस्रव होता है। इन चार कषाय को संयमित रखने के लिए माध्यस्थता, करुणा, प्रमोद, मैत्री भाव धारण करना चहिये। (jain dharm ke 24 tirthankar kaun the)

चार गति

चार गतियाँ जिनमें संसरी जीव का जन्म मरण होता रहता है- देव गति, मनुष्य गति, तिर्यंच गति, नर्क गति। मोक्ष को पंचम गति भी कहा जाता है।

चार निक्षेप

नाम निक्षेप, स्थापना निक्षेप, द्रव्य निक्षेप, भाव निक्षेप।

अहिंसा

जैन धर्म में अहिंसा और जीव दया पर विशेष बल दिया जाता है। सभी जैन शाकाहारी होते हैं। अहिंसा का पालन करना सभी मुनियों और श्रावकों का परम धर्म होता है। जैन धर्म का मुख्य वाक्य ही "अहिंसा परमो धर्म" है।

अनेकान्तवाद

अनेकान्त का अर्थ है- किसी भी विचार या वस्तु को अलग अलग दष्टिकोण से देखना, समझना, परखना और सम्यक भेद द्धारा सर्व हितकारी विचार या वस्तु को मानना ही अंनेकात है

स्यादवाद

स्यादवाद का अर्थ है- विभिन्न अपेक्षाओं से वस्तुगत अनेक धर्मों का प्रतिपादन

मन्त्र (Mantra)

यह जैन धर्म का परम पवित्र और अनादि मूलमंत्र है जो प्राकृत भाषा में है-

णमो अरिहंताणं। णमो सिद्धाणं। णमो आइरियाणं।

णमो उवज्झायाणं। णमो लोए सव्वसाहूणं॥

अर्थात अरिहंतों को नमस्कारसिद्धों को नमस्कार, आचार्यों को नमस्कारउपाध्यायों को नमस्कार, सर्व साधुओं को नमस्कार। ये पंच परमेष्ठी हैं।


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जैन धर्म में काल चक्र (Kaal Chakra)

जैन कालचक्र दो भाग में विभाजित है : उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी

जिस प्रकार काल हिंदुओं में मन्वंतर कल्प आदि में विभक्त है उसी प्रकार जैन में काल दो प्रकार का हैउत्सर्पिणी और अवसर्पिणी। अवसर्पिणी काल में समयावधि, हर वस्तु का मान, आयु, बल इत्यादि घटता है जबकि उत्सर्पिणी में समयावधि, हर वस्तु का मान और आयु, बल इत्यादि बढ़ता है इन दोनों का कालमान दस क्रोड़ाक्रोड़ी सागरोपम का होता है अर्थात एक समयचक्र बीस क्रोड़ाक्रोड़ी सागरोपम का होता है। प्रत्येक उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी में 24 तीर्थंकर, 12 चक्रवर्ती, 9 बलदेव, 9 नारायण और 9 प्रतिनारायण का जन्म होता है। इन्हें त्रिसठ श्लाकापुरुष कहा जाता है। ऊपर जो २४ तीर्थंकर गिनाए गए हैं वे वर्तमान अवसर्पिणी के हैं। प्रत्येक उत्सिर्पिणी या अवसर्पिणी में नए नए जीव तीर्थंकर हुआ करते हैं। इन्हीं तीर्थंकरों के उपदेशों को लेकर गणधर लोग द्वादश अंगो की रचना करते हैं। ये ही द्वादशांग जैन धर्म के मूल ग्रंथ माने जाते है। (jain dharm ke 24 tirthankar ke naam)

जैन धर्म संगीति (jain dharm sangiti)

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जैन धर्म के अन्‍य महत्‍वपूर्ण तथ्‍य (Jain Dharm ke Important Facts)

·      जैन धर्म के संस्थापक jain dharm ke sansthapak ऋषभदेव थे। जैन धर्म के प्रवर्तक को तीर्थकर कहा जाता है। ऋषभदेव पहले तीर्थकर थे।

·      तीर्थकर का अर्थ होता है, दुःख से परे संसार रूप सागर को पार कराने वाला।

·      जैन धर्म के 23 वें तीर्थकर पार्श्‍वनाथ थे इन्हें झारखण्ड केसम्मेद शिखर पर ज्ञान की प्राप्ती हुई, जिस कारण सम्मेद शिखर का नाम पारसनाथ की चोटी हो गया। ज्ञान प्राप्ती के बाद इन्होंने चतुरायण धर्म दिया जो निम्नलिखित है
(i) झूठ न बोलना 

(ii) धन संग्रह न करना 

(iii) चोरी न करना

(iv) हिंसा न करना

·      जैन धर्म के 24 वें तीर्थकर एवं अंतिम तीर्थकर महावीर स्वामी हैं। इन्हें जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक कहते हैं।

·      इनके पिता सिद्धार्थ थे, जो ज्ञातृक कुल के राजा थे। इनकी माता त्रिशला थी। जो लिच्छिवी नरेश चेटक की बहन थी। इनके बड़े भाई नंदीवर्मन थे।

·      इनका जन्म 640 ई.पू. वैशाली के कुंडग्राम में हुआ था | इनकी पत्नि यशोदा थी। इनकी बेटी प्रियदर्शनी (अन्नोज्या) थी। दामाद जमालि था। (bhagwan mahaveer ki patni ka naam)

·      30 वर्ष की आयु में गृह त्याग दिए। 12 वर्ष के कठोर तपस्या के बाद जाम्भिक ग्राम में एक साल वृक्ष के नीचे ऋजुपालका नदी के तट पर इन्हें ज्ञान की प्राप्ती हुई । ज्ञान प्राप्ती को 'कैवल्य" कहते हैं।

·      ज्ञान प्राप्ती के बाद इन्हें कैवलीन, जीन या निग्रोथ कहा गया। जीन का अर्थ होता है, विजेता जबकि निग्रोथ का अर्थ होता है, बंधन से मुक्त।

·      इन्होंने पहला उपदेश राजगीर में दिया था। जबकि अंतिम उपदेश पावापुरी में दिया । ज्ञान प्राप्ती के बाद इन्होंने पंचायन धर्म दिया जो निम्नलिखित हैं।

o  झूठ नहीं बोलना 

o  धन संग्रह नहीं करना (अपरिक्षेय) 

o  चोरी नहीं करना ( उस्तेव)

o  हिंसा नहीं करना 

o  ब्रह्मचर्य (विवाह नहीं करना)

·      महावीर स्वामी ने त्रिरत्न दिए जो निम्नलिखित हैं

o  सम्यक ज्ञान 

o  सम्यक आचरण 

o  सम्यक विश्वास

·      महावीर स्वामी ने ईश्वर के अस्तित्व को नहीं माना जिस कारण वे मूर्तिपूजा और कर्मकांड का विरोध किए। (bhagwan mahaveer ka janm kahan hua tha)

·      इन्होंने पुनर्जन्म को माना और पुनर्जन्म का सबसे बड़ा कारण आत्मा को बताया । आत्मा को सताने के लिए इन्होंने कहा कि मोक्ष प्राप्ति के बाद पुनर्जन्म से मुक्ति मिल जाएगी।

·      महावीर स्वामी ने अंहिसा पर सर्वाधिक बल दिया, जिस कारण उन्होंने कृषि तथा युद्ध पर प्रतिबंध लगा दिए।

·      महावीर स्वामी के दिए गए उपदेशों को चौदह पूर्व नामक पुस्तक में रखा गया जो जैन धर्म की सबसे प्राचीन पुस्तक है। (bhagwan mahaveer ki mata ka naam)

·      महावीर स्वामी ने अपेन उपदेश प्राकृत भाषा में दिए। 468 ई. पू. पावापुरी में इनकी मृत्यु हो गई।

·      भद्रबाहु तथा स्थूलबाहु इनके दो सबसे प्रिय अनुयायी थे।

·      मौर्य काल में मगध पर 12 वर्षीय भीषण अकाल पड़ा जिस कारण भद्रबाहु अपने अनुयायियों के साथ दक्षिण भारत में कर्नाटक चले गए।

·      इन्हीं के साथ चन्द्रगुप्त मौर्य आया था। जिसने कर्नाटक के श्रवण बेलगोला में संलेखना से प्राण त्याग दिये।

·      इस भीषण अकाल में भी स्थूलबाहु तथा उसके अनुयायी मगध में ही रूके रहे। जब अकाल खत्म हो गया तो भद्रबाहु मगध लौट आया। किन्तु इन दोनों में विवाद हो गया।

·      भद्रबाहु के नेतृत्व वाले लोग निर्वस्त्र रहते थे, जिन्हें दिगम्बर कहा गया। जबकि स्थुलाबाहु के नेतृत्व वलो लोग श्वेत वस्त्र पहनते थे। जिसे श्वेताम्बर कहा गया। (bhagwan mahaveer ke pita ka naam)

·      जैन धर्म के विस्तृत प्रचार के लिए 2 जैन संगितीयाँ हुई हैं।

·      पहली जैन संगिती 300 ई.पू. पाटलीपुत्र में हुई जिसकी अध्यक्षता स्थूलबाहु ने किया। उसी में भद्रबाहु ने 12 अंग नामक पुस्तक की रचना की।

·      द्वितीय जैन संगिती- यह छठी शताब्दी में गुजरात के वल्लभी में हुई । उसकी अध्यक्षता देवाधिश्रमण ने किया। उसी संगिती में 12 उपांग की रचना की गई।

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जैन धर्म से संबंधित One liner प्रश्‍न (jain dharm one liner in hindi)

·       महावीर स्‍वामी का जन्‍म कहाँ हुआ था कुण्‍डग्राम में

·       महावीर का मूल नाम था वर्धमान

·       महावीर की मृत्‍यु कहाँ हुई थी पावापुरी

·       महावीर की माता कौन थी त्रिशला

·       भगवान महावीर का प्रथम शिष्‍य कौन था जमालि

·       जैनियों के पहले तीर्थंकर कौन थे ऋषभदेव

·       जैन ग्रन्‍थ कल्‍प सूत्रकेरचियता है भद्रबाहु

·       जैन साहित्‍य को कहा जाता है आगम

·       स्‍यादवाद सिद्धान्‍त है जैन धर्म का

·       कौन सबसे पूर्वकालिक जैन ग्रन्‍थ कहलाता है चौदह पूर्व

·       द्वितीय जैन महासभा का आयोजन कहाँ हुआ था वल्‍लभी

·       प्रथम जैन महासभा का आयोजन कहाँ हुआ था पाटलिपुत्र

·       महावीर स्‍वामी का जन्‍म किस क्षेत्रीय गोत्र में हुआ था जांत्रिक

·       जैन परम्‍परा के अनुसार जैन धर्म में कुल कितने तीर्थंकर हुए 24

·       जैन परम्‍परा के अनुसार महावीर कौन-से तीर्थंकर थे चौबीसवें

·       अनेकांतवाद किसका क्रोड़ (केन्‍द्रीय) सिद्धान्‍त एवं दर्शन है जैन मंत

·       जैन साहित्‍य का संकलन किस भाषा व लिपि में है प्राकृत व अर्धमागधी

·       भागवत सम्‍प्रदाय के विकास में किसका योगदान अत्‍यधिक था हिन्‍द-यूनानी

·       जैन समुदाय में प्रथम विभाजन के श्‍वेताम्‍बर सम्‍प्रदाय के संस्‍थापक थे स्‍थूलभद्र

·       दिलवाड़ा के जैन मन्दिरों का निर्माण किसने करवाया था चौलुक्‍यों/सोलंकियों ने

·       जैन दर्शन के अनुसार सृष्टि की रचना एवं पालन-पोषण सार्वभौमिक सत्‍य से हुआ है

·       त्रिरत्‍न सिद्धान्‍त सम्‍यक् धारणा, समयक चरित्र, सम्‍यक ज्ञान- जिस धर्म की महिमा है, वह है जैन धर्म

·       जैन तीर्थंकर पार्श्‍वनाथ द्वारा प्रतिपादित चार महाव्रतों में महावीर स्‍वामी ने पाँचवे महाव्रत के रूप में क्‍या जोड़ा ब्रह्म्‍चर्य

जैन धर्म से संबंधित महत्‍वपूर्ण वस्‍तुनिष्‍ठ प्रश्‍न (30 Important Questions mcq Quiz)

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1. जैन धर्म के संस्थापक कौन थे ?





2. जैन धर्म के अनुसार जैन धर्म में कुल कितने तीर्थंकर है ?





3. जैन धर्म के 23 वें तीर्थंकर कौन थे ?





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4. महावीर ने अपने उपदेश मुखयतः किस भाषा में दिए हैं ?





5. किस जैन तीर्थंकर का नाम ऋग्वेद में मिलता है ?






6. महावीर के बचपन का नाम क्या था ?





7. महावीर का जन्म कब और कहां हुआ ?




8. जैन धर्म धर्म के 24 वें तीर्थंकर कौन थें ?




9. जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर महावीर स्वामी का प्रतीक चिन्ह क्या है ?




10. महावीर के पिता का नाम क्या था ?





11. वर्धमान महावीर के बड़े भाई का क्या नाम था ?




12. वर्धमान महावीर ने अपना पहला उपदेश कहां दिया था ?




13. वर्धमान महावीर को ज्ञान की प्राप्ति की पेड़ के नीचे हुई थी ?




14. महावीर स्वामी को सम्पूर्ण ज्ञान का बोध किस नदी के तट पर हुआ था ?




15. वर्धमान महावीर के प्रथम अनुयाई कौन बना ?





16. निम्लिखित में से कौन प्रथम जैन भिक्षुणी थी ?




17. प्रथम जैन संगति किनकी अध्यक्षता में हुई थी ?




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18. प्रथम जैन संगति कब और कहां हुई थी ?




19. प्रथम जैन संगति किसके शासनकाल में हुई थी ?




20. महावीर की मृत्यु कब और कितने वर्ष की अवस्था में हुई ?





21. महावीर की मृत्यु कहां हुई ?





22. ‘कल्पसूत्र‘ के रचयिता कौन है ?





23. कल्प वृक्ष की अवधारणा किस धर्म में देखने को मिलता है ?





24. जैन मतानुसार अंतिम केबालिन कौन हुआ ?





25. दिलवाड़ा का जैन मंदिर किस राज्य में अवस्थित है ?





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26. गोमतेश्वर की मूर्ति कहा अवस्थित है





27. जैन धर्म में पूर्ण ज्ञान के लिए क्या शब्द है ?




28. जैन धर्म का आधारभूत बिंदु क्या है ?




29. प्रथम जैन महासभा का आयोजन कहाँ हुआ था ?




30. जैन साहित्य का संकलन किस भाषा व लिपि में है ?



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