रस | रस की परिभाषा | रस के प्रकार एवं भेद
रस | रस की परिभाषा | रस के प्रकार एवं भेद
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रस | रस की परिभाषा | रस के प्रकार एवं भेद
हेलो
दोस्तों,
Studyfundaaa द्वारा आप सभी को प्रतिदिन प्रतियोगी परीक्षाओं
से सम्बंधित जानकारी Share की जाती है. जैसा कि हम सभी जानते
हैं कि प्रत्येक Competitive Exams में 'हिन्दी व्याकरण' से
सम्बंधित प्रश्न पूछे जाते हैं. आज इस पोस्ट में हम आपके समक्ष जो जानकारी Share
कर रहे हैं वह रस | रस की परिभाषा | रस
के प्रकार एवं भेद की है. यह पोस्ट विभिन्न
प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्रों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है
रस
| रस की परिभाषा | रस के प्रकार एवं भेद
रस की परिभाषा
रस का शाब्दिक अर्थ है ‘आनंद’। काव्य के पढ़ने या सुनने से जिस आनंद की
अनुभूति होती है, उसे रस कहते है। रस को ‘काव्य की आत्मा/प्राण तत्व’ माना जाता है। (ras
ki paribhasha)
रस के चार अवयव या अंग (ras
ke ang)
होते है-
1.
स्थायी भाव
2.
विभाव
3.
अनुभाव
4.
व्याभिचारी भाव
1. स्थायी भाव (Sthayibhav
ki paribhasha)
स्थायी भाव मन की उस
स्थिति को कहा जाता है जो किसी वस्तु अथवा व्यक्ति के प्रति किसी विशिष्ट दशा
में उद्भूत (उत्पन्न) हो।
स्थायी भाव ह्रदय के वे भाव हुये जिन्हें सहायक अथवा
विरोधी भाव दबा नहीं सकते और जो अंत:स्थल में सर्वदा छिपे रहते हैं व समय पाकर
जागृत होते हैं। स्थायी भाव (sthayi bhav) निम्न
होते हैं – (ras ke sthayi bhav)
स्थायी भावों को जागृत
करने वाले भाव विभाव कहे जाते हैं। विभाव 3 प्रकार के हेाते हैं-
(i)
आलम्बन विभाव : स्थायी भाव उत्पन्न
करने वाली वस्तु को 'आलम्बन' कहते
हैं- जैसे ‘शेर’ को देखकर स्थायी भाव ‘भय’ उत्पन्न होता है इस प्रकार ‘शेर’ आलम्बन विभाव (alamban
vibhav)
कहलायेगा।
(ii)
आश्रय विभाव: स्थायी भाव जिस
व्यक्ति में उत्पन्न होता है उसे 'आश्रय' कहते हैं। जैसे – शेर को देखकर भयभीत होने वाला ‘व्यक्ति’
आश्रय विभाव कहलायेगा।
(iii)
उद्दीपन विभाव : स्थायी भाव को उत्तेजना
देने वाले देश काल को 'उद्दीपन' कहा
जाता है। उदाहरण के लिए ‘शेर’ का गर्जन
करना (दहाड़ना) उद्दीपन (uddipan vibhav)
कहलायेगा।
जरूर पढे़ - संधि | संधि की परिभाषा | संधि के भेद
3. अनुभाव (Anubhav
ki paribhasha)
स्थायी
भाव का अनुभव (ज्ञान) कराने वाली आश्रय की चेष्टाओं को अनुभाव कहते हैं। जैसे-
शेर को देखकर ‘कॉंपने लगना’ स्थायी भाव का अनुभाव है। जैसे- भय स्थाई भाव के आने पर कम्प, स्वर भंग, मूर्च्छा, रोमांच,
पसीना आदि का आना।
अनुभाव दो प्रकार के
होते हैं-
1.
कायिक
2.
सात्विक
1.
कायिक : जो विकार या व्यापर शरीर के अंगों की चेष्टाओं के रूप में होते
हैं वे 'कायिक अनुभाव' कहे जाते हैं।
जैसे-
कटाक्षपात हाथ से इशारा करना आदि।
2.
सात्विक : जो विकार या व्यापार मन की विभिन्न स्थितियों के कारण उत्पन्न
हो उसे 'सात्विक अनुभाव' कहते हैं। इनका रूप स्वाभाविक होता
है एवं आश्रय का इन पर कोई वश नहीं होता। सात्विक अनुभाव आठ श्रेणियों में विभक्त
किए गए हैं। स्तम्भ, स्वेद, रोमांच,
स्वर-भंग, वेपथु (कम्प), वैर्वण्य (रंग उड़ना) अश्रु, प्रलय (चेतना शून्यता)
आदि।
4. व्याभिचारी
या संचारी भाव (Sancharibhav ki paribhasha)
स्थायी
भाव के जागृत होने पर जिन भावों का उदय होता है उन्हें व्यभिचारी या संचारी भाव
(sanchari bhav) कहते हें। ये भाव स्थायी भावों को पुष्ट करते हैं
तथा उत्पन्न होकर विनष्ट होते रहते हैं ये भाव संख्या में कुल 33 होते हैं जो
निम्न हैं- निर्वेद, आवेग, दैनय
(हीनता), श्रम, मद, जड़ता, उग्रता, मोह, शंका, चिन्ता, ग्लानि,
विषाद्, व्याधि, आलस्य,
अमर्ष, हर्ष, गर्व,
असूया (ईर्ष्या), धृति (धैर्य), मति (ज्ञानी), चपलता,
बीड़ा अवहित्था, निद्रा, स्वप्न, विबोध (ज्ञान
प्राप्ति), उन्माद, अपस्मार (मानसिक दु:ख), स्मृति,
औत्सुक्य, त्रास, वितर्क
मरण। (sanchari bhavo ki sankhya)
जरूर पढे़ - वाक्य की परिभाषा, भेद एवं उदाहरण
रस के प्रकार एवं
भेद (Ras ke prakar evem bhed)
रस के 9 भेद है। जिन्हें
‘नवरस’ कहा जाता है, जिनमें
श्रृंगार, हास्य, करूण, वीर, रोद्र, भयानक, वीभत्स, अद्भूत, शांत रस आते
है
श्रृंगार रस (Shringar
ras)
यह
रस राज अर्थात् रसों का राजा कहलाता है। इसमें प्रेमियों के पवित्र प्रेम का उल्लेख
होता है। श्रृंगार रस का स्थायी भाव ‘रति’
होता है। (shringar ras ki paribhasha)
श्रृंगार
रस में नायक और नायिका के मन में संस्कार रूप से स्थित रति या प्रेम जब रस के
अवस्था में पहुंच जाता है तो वह ‘श्रृंगार
रस’ कहलाता है। श्रृंगार रस को ‘रसराज’
या ‘रसपति’ भी कहा जाता
है। श्रृंगार रस के दो भेद होते है-
1.
संयोग श्रृंगार
2.
वियोग श्रृंगार
1.
संयोग श्रृंगार – संयोग श्रृंगार वह अवस्था होती है,
जहां नायक-नायिका, पति-पत्नि
का संयोग होता है अर्थात् इसमें प्रेमी-प्रमिकाओं के परस्पर मिलन, संलाप, स्पर्श आदि से उत्पन्न भावों का वर्णन
होता है। (sanyog shringar)
उदाहरण :
''बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाई।
सौंह
करें भौहनु हंसे, दैन कहैं नटि जाई।।''
2.
वियोग श्रृंगार – वियोग श्रृंगार की अवस्था वहां होती है,
जहां नायक-नायिका, पति-पत्नि का वियोग होता है। दोनों मिलने के लिए व्याकुल होते हैं, यह बिरह इतनी तीव्र होती है कि सबकुछ जलाकर भस्म करने को सदैव आतुर होती
है। (viyog shringar ki paribhasha)
उदाहरण :
''हे खगमृग! हे मधुकर श्रेनी।
देखी
तुम सीता मृगनयनी।।''
वात्सल्य रस (Vatsalya
ras)
जब
किसी काव्य को पढ़कर सह्रदय के ह्रदय में बाल प्रेम उद्दीप्त हो,
वहॉं 'वात्सल्य रस'
होता है। इस रस का स्थायी भाव ‘स्नेह’ है।
दूसरे
शब्दो में, माता का
पुत्र के प्रति प्रेम, बड़ो का छोटों के प्रति प्रेम,
गुरू का शिष्यों के प्रति प्रेम, बड़े भाई या
बहन का छोटे भाई-बहन के प्रति प्रेम ‘स्नेह’ कहलाता है यही स्नेह परिपुष्ट होकर ‘वात्सल्य रस’
कहलाता है। (vatsalya ras ki
paribhasha)
उदाहरण :
''किलकत कान्ह घुटरूबन आवत।
मनिमय
कनक नंद के आंगन बिम्ब पकरिवे धावत।।''
शांत रस (Shant
ras)
तत्व
ज्ञान संसार की असारता, सांसारिक पदार्थों की
असारता तथा परमात्मा के वास्तविक स्वरूप का ज्ञान होने पर 'शांत रस' की उत्पत्ति होती है। शांत रस का स्थायी
भाव ‘निर्वेद’ होता है। (shant
ras ki paribhasha)
उदाहरण :
''मन रे तन कागद का पुतला।
लागै
बूँद बिनसि जाय छिन में, गरब करै क्या इतना।।''
वीभत्स रस (Vibhats
ras)
घृणित
वस्तुओं के देखने व सुनने से ह्रदय में जो ग्लानि (घृणा) उत्पन्न होती है,
वही 'वीभत्स रस' का रूप
ग्रहण कर लेती है। इस रस का स्थायी भाव ‘जुगुप्सा’ होता है। (vibhats ras ki paribhasha)
उदाहरण :
''सिर पर बैठ्यो काग ऑंख दोउ खात निकारत।
खींचत
जीभहिं स्यार अतिहि आनंद उर धारत।।''
जरूर पढे़ - विराम चिन्ह की परिभाषा, भेद एवं उदाहरण
भयानक रस (Bhayanak
ras)
किसी
भयानक वस्तु को देखने या उसका वर्णन सुनने आदि से 'भयानक
रस' की उत्पत्ति होती है। भयानक रस का स्थायी भाव ‘भय’ होता है। (bhayanak ras ki
paribhasha)
उदाहरण :
''एक ओर अजगरहिं लखि, एक ओर मृगराज।
बिकल
बटोही बीच में परयों मूर्च्छा खाय।।''
करूण
रस (Karun ras)
किसी
प्रिय व्यक्ति की मृत्यु या इष्ट वस्तु की हानि आदि से जहॉं शोक भाव की
परिपुष्टि होती है या शोक भाव जागृत होता है, वहॉं 'करूण रस' की व्यंजना होती है। करूण रस का स्थायी
भाव ‘शोक’ होता है। (karun
ras ki paribhasha)
उदाहरण :
''कैसा अभाग्य। अपने हाथों ही
हाथ।
स्वयं हम छले गये।
यह
भी पूँछ न सकते बापू
क्यों
हमें छोड़ तुम चले गये?''
हास्य
रस (Hasya ras)
विचित्र
आकृति,
विचित्र प्रकार की वेशभुषा आदि को देखकर या इनका वर्णन पढ़कर या
सुनकर ह्रदय में विनोद तथा हँसी का भाव उत्पन्न हो जाता है, तब 'हास्य रस' की निष्पत्ति
होती है। हास्य रस का स्थायी भाव हास है। (hasya ras ki
paribhasha)
दूसरे
शब्दों में, किसी
असाधारण व्यक्ति की असाधारण आकृति, विचित्र
वेशभूषा, अनोखी बातें सुनने या देखने से मन मे जो भाव उत्पन्न
होता है उस स्थायी भाव को ‘हास्य रस’ कहते है।
उदाहरण :
''कानो ते कानो मत कहो, कानो जायगो रूठ।
होले-होले
पुछलै,
तेरी कैसे गई है फूट।।''
जरूर पढ़े - अलंकार | अलंकार की परिभाषा | अलंकार के भेद
वीर रस (Veer
ras)
वीर
रस का स्थायी भाव ‘उत्साह’ है। ह्रदय में तीव्र वेग से जब उत्साह उमड़ता तब 'वीर
रस' की उत्पत्ति होती है। यह उत्साह कभी युद्ध के लिए कभी
दान के लिए है। वीर रस के चार भेद है- दानवीर, धर्मवीर,
युद्ध्वीर, दयावीर। (veer
ras ki paribhasha)
दूसरे
शब्दो में, शत्रु
का उत्कर्ष, दीनों की दुर्दशा, धर्म की हानि आदि को देखकर इनको मिटाने के लिए किसी के ह्रदय में उत्साह
नामक भाव जागृत हो, वहॉं 'वीर रस' होता है। वीर रस का स्थायी भाव ‘उत्साह’ है।
उदाहरण :
''वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो।
सामने
पहाड़ हो कि सिंह की दहाड़ हो।
तुम
कभी रुको नहीं, तुम कभी झुको नहीं।।''
रौद्र रस (Rodra
ras)
अनिष्ट,
अपकार, निंदा आदि होने पर जहॉं क्रोध की व्यंजना
होती है वहॉं 'रौद्र रस' होता है रौद्र
रस का स्थायी भाव ‘क्रोध’ होता है। (rodra
ras ki paribhasha)
दूसरे
शब्दों में, जब
किसी एक पक्ष या व्यक्ति या द्वारा दूसरे पक्ष या दूसरे व्यक्ति का अपमान करने
अथवा अपने गुरूजन आदि की निन्दा से जो क्रोध उत्पन्न होता है उसे ‘रौद्र रस’ कहते हैं।
उदाहरण :
''श्रीकृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्षोभ से जलने लगे।
सब
शील अपना भूल कर करतल युगल मलने लगे।।''
भक्ति रस (Bhakti
ras)
जहॉं
ईश्वर के प्रति प्रेम या अनुराग का वर्णन होता है वहॉं 'भक्ति रस' होता है। भक्ति रस का स्थायी भाव ‘देव रति’ होता है। (bhakti
ras ki paribhasha)
उदाहरण :
''राम जपु, राम जपु, राम जपु
बावरे।
घोर
भव नीर-निधि, नाम निज नाव रे।।''
रस के महत्वपूर्ण
तथ्य (ras ke important facts)
·
स्थायी भाव के आधार पर
रसों की संख्या 9 मानी गई है।
·
नाटक में 8 रस ही माने
जाते हैं। शांत रस वहाँ नहीं माना जाता है।
·
अभिनवगुप्त ने रसों की
संख्या 9,
जबकि भरत मुनि ने रसों की संख्या 8 बतायी है।
·
परंतु कुछ आचार्यों ने ‘भक्ति‘ और ‘वात्सल्य‘ रस को भी रस के रूप में प्रतिष्ठित किया है। लेकिन ये दोनों सामान्यतः
श्रृंगार रस के अंतर्गत आते है।
रस से संबंधित महत्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्न (30 Important Ras MCQ in hindi)
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1. स्थायी भावों की कुल संख्या है-
2. श्रृंगार रस का स्थायी भाव क्या है ?
3. शांत रस का स्थायी भाव क्या है ?
4. किलक अरे मैं नेह निहारूं, इन दाँतो पर मोती वारूँ। इन पंक्तियों में कौन-सा रस है ?
5. विस्मय स्थायी भाव किस रस में होता है ?
6. अति मलीन वृषभानुकुमारी। अधोमुख रहित, उरध नहिं चितवत, ज्यों गथ हारे थकित जुआरी। छूटे चिहुर बदन कुम्हिलानो, ज्यों नलिनी हिमकर की मारी।। प्रस्तुत पंक्तियों में कौन-सा रस है ?
7. कवि बिहारी मुख्यतः किस रस के कवि हैं ?
8. सर्वश्रेष्ठ रस किसे माना जाता है ?
9. शोभित कर नवनीत लिए घुटरूनी चलत रेनु तन मण्डित मुख दधि लेप किए। इन पंक्तियों में कौन सा रस है ?
10. मेरे टो गिरिधर गोपाल दुसरो न कोई। जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।। इन पंक्तियों में कौन-सा रस है ?
11. 'ट', 'ठ', 'ड', 'ढ' वर्णों के प्रयोग का सम्बन्ध काव्य के किस गुण से है ?
12. रसोपति में आश्रय की चेष्टाएं क्या कही जाती है ?
13. प्रिय पति वह मेरा प्राण प्यारा कहाँ है? दुःख-जलनिधि-डूबी सहारा कहाँ है ? इन पंक्तियों में कौन सा स्थायी भाव है ?
14. माधुर्य गुण का किस रस में प्रयोग होता है ?
15. रस कितने प्रकार के होते हैं ?
16. हिन्दी साहित्य का नौवां रस कौन-सा है ?
17. उधो मोहि ब्रज विसरत नाहीं। हंससुता की सुन्दर कगरी और द्रुमन की छन्हि।। इन पंक्तियों में कौन-सा रस है ?
18. उस काल कारे क्रोध के, तन कांपने उसका लगा। मानो हवा के जोर से, सोता हुआ सागर जगा द्यद्य प्रस्तुत पंक्तियों में कौन-सा रस है ?
19. 'वाक्य रसात्मक काव्यम' किसका कथन है ?
20. मन की उतप्त वेदना, मन ही मन बहती थी। चुप रहकर अन्तर्मन में, कुछ मौन व्यथा कहती थी।। दुर्गम पथ पर चलने का वो संबल छूट गया था। अविचल, अविकल वह प्राणी, भीतर से टूट गया था।। उपर्युक्त काव्य - पंक्तियों में कौन सा रस अभिव्यंजित हो रहा है ?
21. किस रस को 'रसराज' कहा जाता है ?
22. वीर रस का स्थायी भाव क्या होता है ?
23. संचारी भावों की संख्या है -
24. भरत मुनि के अनुसार रसों की संख्या है -
25. भरतमुनि के रससूत्र में निम्नलिखित में से किसका उल्लेख नहीं है ?
26. वीभत्स रस का स्थायी भाव है -
27. जहँ-तहँ मज्जा मांस रुचिर लखि परत बगारे। जित-जित छिटके हाड़, सेत कहूँ, कहूँ रतनारे।। इव अवतरण में -
28. क्रोध किस रस का स्थायी भाव है
29. केसव कहि न जाइ का कहिये। देखत तव रचना विचित्र अति समुझि मनहिं मन रहिये।। इस काव्य-पंक्ति में है
30. किलक अरे मैं नेह निहारूं। इन दाँतो पर मोती वारूँ। इन पंक्तियों में कौन-सा रस है ?
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