अलंकार क्या है | अलंकार की परिभाषा | अलंकार के भेद
अलंकार |अलंकार की परिभाषा | अलंकार के भेद
अलंकार |अलंकार की परिभाषा | अलंकार के भेद
हेलो दोस्तों,
Studyfundaaa द्वारा
आप सभी को प्रतिदिन प्रतियोगी परीक्षाओं से सम्बंधित जानकारी Share की जाती है. जैसा कि हम सभी जानते हैं कि प्रत्येक Competitive Exams
में हिन्दी से सम्बंधित प्रश्न पूछे जाते हैं. आज इस पोस्ट में
हम आपके समक्ष जो जानकारी share कर रहे हैं वह अलंकार (Alankar) की है. यह पोस्ट विभिन्न प्रतियोगी
परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्रों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है
अलंकार (Alankar)
अलंकार की परिभाषा (Alankar Ki Paribhasha)
अलंकार
का शाब्दिक अर्थ है ‘आभूषण’। जिस प्रकार सुवर्ण आदि के आभूषणों से शरीर की शोभा बढ़ती है उसी प्रकार
काव्य अलंकारों से काव्य की। अर्थात काव्य की शोभा बढ़ाने वाले धर्म को अलंकार
कहते है। (alankar in hindi)
अलंकार के तीन
भेद है – (Alankar ke bhed)
(1)
शब्दालंकार
(2)
अर्थालंकार
(3)
उभयालंकार
जहॉं शब्दों के कारण
काव्य में सौन्दर्य या चमत्कार उत्पन्न होता है तो वहॉं शब्दालंकार होता हैं।
शब्दालंकार के
भेद (Shabdalankar ke bhed)
1.
अनुप्रास अलंकार
2.
यमक अलंकार
3.
श्लेष अलंकार
4.
वक्रोक्ति अलंकार
5.
विप्सा अलंकार
जरूर पढे़ - संधि | संधि की परिभाषा | संधि के भेद
अनुप्रास अलंकार
(Anupras Alankar)
जब
शब्द अथवा अक्षरों की पुनरावृत्ति से काव्य में चमत्कार या सुंदरता उत्पन्न हो
वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।
उदाहरण :
कंकन
किंकिन नूपुर धुनि सुनि।
कहत
लखन सन राम ह्रदय मुनि।
यहाँ
कंकन और किंकिन में ‘क’ तथा
धुनि-सुनि में ‘नि’ और ‘लखन-सन’ में ‘न’ की आवृत्ति हुई है। (anupras alankar in hindi)
अनुप्रास अलंकार
के पाँच भेद होते है जो इस प्रकार है-
(अ) छेकानुप्रास
- जब आवृत्ति केवल दो बार हो।
उदाहरण :
लंपट
कपट कुटिल विशेषी
इसमें ‘क’ की आवृत्ति केवल एक बार हुई है।
(ब)
वृत्यानुप्रास - जब आवृत्ति वृत्ति के अनुसार एक या
अनेक वर्णों में कई बार हों।
उदाहरण :
‘’तरणि तनुजा तट तमाल तरुवर बहु छाये’’।
यहाँ ‘त’ वर्ण की आवृत्ति कई बार हुई है।
(स) लाटानुप्रास
- जब शब्द और अर्थ का भेद किए बिना पद (वाक्या्शं, वाक्य)
की आवृत्ति हो तो ‘लाटानुप्रास’ अलंकार
होता है। (anupras alankar examples)
उदाहरण :
पीय
निकट जाके नहीं,
धाम चाँदनी ताहि।
पीय
निकट जाके,
नही, धाम चाँदनी ताहि।
यहाँ दोनों पंक्ति एक सी
है। पर अन्वय करने से अर्थ में भिन्नता आ जाती है।
(द)
श्रुत्यानुप्रास - जब एक ही स्थान से उच्चारित होने
वाले वर्णों की आवृत्त हो तो श्रुत्यानुप्रास अलंकार होता है।
उदाहरण :
मेरी
भव बाधा हरौ, राधा नागरि सोय।
यहाँ मेरी भव बाधा में ‘म‘, ‘भ‘, ‘ब‘ एक ही स्थान ओष्ठ से बोले जाने वाले हैं।
(इ)
अन्त्यानुप्रास - छंद के चंरणांत में वर्णों की
साम्यता होने पर अन्त्यानुप्रास अलंकार होता है। प्रत्येक तुकान्त कविता में यह
रहता है। (anupras alankar ke bhed)
उदाहरण :
बिनु
सत्संग विवेक न होई।
राम
कृपा बिनु सुलभ न सोई।।
यहाँ चरणांत के ‘होई‘ और ‘सोई‘ में ई की साम्यता है।
यमक अलंकार
(Yamak Alankar)
जहाँ
एक शब्द एक से अधिक बार आता है और हर बार उसका अर्थ अलग-अलग निकलता है। वहाँ यमक
अलंकार होता है। (yamak alankar ki paribhasha)
उदाहरण :
कनक, कनक
ते सौ गुनी मादकता अधिकाय।
वा
खाये बौराय नर या पाये पौराय।।
यहाँ एक कनक का अर्थ ‘सोना’ व दूसरे का अर्थ ‘धतूरा’
होता है।
श्लेष अलंकार
(Shlesh Alankar)
श्लेष
का अर्थ होता है चिपका हुआ या मिला हुआ। जब किसी शब्द’
का प्रयोग एक बार ही किया जाता है लेकिन उससे अर्थ कई निकलते हैं तो
वह ‘श्ले्ष अलंकार’ कहलाता है। (shlesh
alankar ki paribhasha)
उदाहरण :
साधु
चरित शुभ सरिस कपासू।
निरस
विसद गुनमय फल जासू।।
यहाँ ‘गुन‘ शब्द के दो अर्थ ‘गुण‘
और ‘सूत‘ है।
वक्रोक्ति अलंकार
(Yamak Alankar)
वक्रोक्ति
अलंकार वहॉं होता है, जहाँ वक्ता के कथन को
श्रोता उसके आशय से भिन्ना अर्थ ग्रहण करता है। इसके दो भेद है- श्लेष वक्रोक्ति व
काकु वक्रोक्ति।( vakrokti alankar ki paribhasha)
(अ) श्लेष
वक्रोक्ति - जब एक से अधिक कार्य देने वाले
शब्दों के कारण भिन्नार्थ लिया जाय,
वहां वक्रोक्ति अलंकार होता है(slesh vakrokti alankar)
उदाहरण :
को
तुम हो?
घनश्या म हम, तो बरसो कित जाय।
नहीं
नहीं गोपाल हूँ,
धेनु देखु बन जाय।
यहाँ
घनश्याम का अर्थ ‘श्री कृष्ण’ के अलावा ‘काला बादल’ से भी है
और श्रोता ने वक्ता के आशय से भिन्न अर्थ दूसरे रूप में लिया है। इसी प्रकार ‘गोपाल’ का अर्थ ‘श्री कृष्ण’
व ‘गाय पालने वाला’ दो
अर्थ होते है।
(ब) काकु
वक्रोक्ति - जब शब्द अथवा वाक्य की ध्वनि के कारण
अन्य अर्थ ग्रहण किया जाए वहां काकु वक्रोक्ति अलंकार होता है। (kaku
vakrokti alankar)
उदाहरण :
उसने
कहा - जानू,
जाओ मत बैठो
मैने
सुना - जाओ,
मत बैठो
यहाँ
अल्प विराम की ध्वनि के कारण अन्य अर्थ ग्रहण कर लिया गया है अर्थात यहाँ बैठने की
बात हो रही है लेकिन श्रोता ने अल्प विराम की ध्वनि के कारण न बैठने अर्थात जाने
की बात ग्रहण कर ली।
जरूर पढ़े - समास की परिभाषा, भेद एवं उदाहरण
वीप्सा अलंकार
(Vipsa Alankar)
जहाँ
किसी भाव पर बल देने के लिए एक ही शब्द की कई बार आवृत्त हो परन्तु प्रत्येक अर्थ
वही हों अर्थात् मनोभावों को प्रकट करने के लिए शब्द दुहराना। (vipsa
alankar ki paribhasha)
उदाहरण
:
दौड़ो!
दौड़ो! दौड़ो आगि लगी है हमारे घर,
अरे
नाहीं सारी लंक याकी है चपेट में।
भागो!
भागो! भागो! नारीं मरोगे पछाड़ खाय,
आगी
आगी आगी लगी पूँछ की लपेट में।
यहाँ
दौड़ो भागो आगी शब्दों की आवृत्त कई बार विकलता का भाव प्रकट करने के लिए हुई है।
अर्थालंकार
(Arthalankar)
जहाँ
दो या दो से अधिक शब्दों के अर्थ में समता-विषमता तक गूढ़ार्थ आदि के द्वारा अलग हट
कर अर्थ निकाला जाता है, वहाँ अर्थालंकार होता है।
अर्थालंकार के अंतर्गत उपमा, रूपक, उत्प्रे्क्षा,
अतिश्योक्ति, अन्योलक्ति, विरोधाभास, भ्रान्तिमान, संदेह
आदि अलंकार आते है।
अर्थालंकार के भेद
(Arthalankar
ke bhed)
1.
उपमा अलंकार
2.
रूपक अलंकार
3.
उत्प्रेक्षा अलंकार
4.
अतिशयोक्ति अलंकार
5.
अन्योक्ति अलंकार
6.
मानवीकरण अलंकार
7.
भ्रांतिमान अलंकार
8.
संदेह अलंकार
उपमा अलंकार
(Upma Alankar)
उपमा
शब्द का अर्थ होता है- तुलना। जब किसी वस्तु, व्यापार
या गुण में किसी दूसरी वस्तु, व्यापार या गुण के साथ भेद
रहते हुए भी किसी साधारण धर्म का होना (समानता) बताया जाये तो वहॉं ‘उपमा अलंकार’ होता है। इसके चार अंग होते हैं- उपमेय,
उपमान, साधारण धर्म, वाचक।
(upma alankar ki paribhasha)
उदाहरण :
मुख
चन्द्रमा-सा सुन्दर है।
दिए
गए उदाहरण में चेहरे की तुलना चाँद से की गयी है। इस वाक्य में ‘मुख’ - उपमेय है, ‘चन्द्रमा’
- उपमान है, ‘सुन्दर’ - साधारण
धर्म है एवं ‘सा’ - वाचक शब्द है। अतः
यह उपमा अलंकार है।
उपमा के अंग :
(upma alankar ke ang)
(अ) उपमेय
- जिस वस्तु की समानता किसी दूसरे पदार्थ से दिखलायो जाये वह उपमेय होते है। जैसेः
कर कमल सा कोमल है । इस उदाहरण में कर उपमेय है ।
(ब) उपमान
- उपमेय को जिसके समान बताया जाये उसे उपमान कहते हैं । उक्त उदाहरण में ‘कमल’ उपमान है।
(स) साधारण धर्म
- वह गुण जो उपमेय और उपमान दोनों में विद्यमान हो।
(द) वाचक
- जिस शब्द के कारण तुलना प्रकट हो जैसे - सदृश, समान,
सा, सो आदि।
जरूर पढे़ - विराम चिन्ह की परिभाषा, भेद एवं उदाहरण
रूपक अलंकार (Rupak
Alankar)
जब
गुण की अत्यांत समानता के कारण उपमेय को ही उपमान बता दिया जाए यानी उपमेय ओर
उपमान में अभिन्नता दर्शायी जाए तब वह ‘रूपक
अलंकार’ कहलाता है। (rupak alankar ki paribhasha)
उदाहरण :
खोलो
अपना मुख पंकज सखी,
देखो
तेरा प्रिय तरिण आया।
यहाँ
मुख व पंकज और प्रिय व तरूणि में कोई भेद न रखकर उपमेय को उपमान के रूप में दिखाया
गया है। (पहचान- रूपी, द्वारा या का, के, की द्वारा दर्शाया जाता है)
उत्प्रेक्षा
अलंकार (Utpreksha Alankar)
जब
उपमेय में उपमान से भिन्नता होते हुए भी उपमेय की उपमान के रूप में सम्भा्वना की
जाय। वहॉं उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। इसकी पहचान -
उत्प्रेक्षा अलंकार में प्रायः मनु, मानो, जनु, जानहु, जानों आदि वाचक
शब्दों का प्रयोग किया जाता है। (utpreksha alankar ki paribhasha)
उदाहरण :
सोहत
ओढ़े पीत पट,
स्याम सलोने गात।
मनहुँ
नीलमनि सैल पर,
आतप परयौ प्रभात।।
यहाँ
इन पंक्तियों में श्रीकृष्ण के सुंदर श्याम शरीर में नीलमणि पर्वत की और शरीर पर
शोभायमान पीताम्बर में प्रभात की धूप की मनोरम संभावना की गई है।
अतिशयोक्ति
अलंकार (Atishyokti Alankar)
जब
किसी वस्तु, व्यक्ति आदि का वर्णन बहुत बाधा चढ़ा
कर किया जाए तब वहां अतिशयोक्ति अलंकार होता है। इस अलंकार में नामुमकिन तथ्य बोले
जाते हैं। (atishyokti alankar ki paribhasha)
उदाहरण :
हनुमान
की पूंछ में लगन न पाई आग,
लंका
सिगरी जल गई गए निशाचर भाग।
ऊपर
दिए गए उदाहरण में कहा गया है कि अभी हनुमान की पूंछ में आग लगने से पहले ही पूरी
लंका जलकर राख हो गयी और सारे राक्षस भाग खड़े हुए।
अन्योक्ति अलंकार (Anyokti Alankar)
जहॉं
किसी बात को प्रत्यथक्ष न कहकर अप्रत्यक्ष रूप से कहते हैं वहॉं अन्योक्ति अलंकार
होता है। (anyokti alankar ki paribhasha)
उदाहरण :
नहिं
पराग नहिं मधुर मधु,
नहीं बिकास यहि काल ।
अली
कली ही तें बँध्यो,
आगे कौन हवाल।।
यहाँ
इन पंक्तियों के माध्यम से कवि बिहारी ने भौंरे पर निशाना साधकर महाराज जयसिंह को
उनकी यथार्थ स्थिति का आभास कराया। महाराज जयसिंह अपनी छोटी रानी के प्रेम में
इतने व्यस्त हो गए कि उन्होंने अपने राजकाज का ध्यान रखना तक छोड़ दिया।
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मानवीकरण अलंकार (Manvikaran Alankar)
जहॉं
जड़ता पर चेतनता का आरोप हो अर्थात जड़ प्राकृतिक उपादानों पर मानवीय क्रियाओं और
भावनाओं का आरोप होता है वहॉं ‘मानवीकरण अलंकार’
होता है। (manvikaran alankar ki paribhasha)
उदाहरण :
उषा
सुनहरे तीर बरसाती, जय लक्ष्मी-सी उदित हुई।
ऊपर दिए गए उदाहरण में
उषा यानी भोर को सुनहरे तीर बरसाती हुई नायिका के रूप में दिखाया जा रहा है। यहाँ
भी निर्जीवों में मानवीय भावनाओं का होना दिख रहा है।
भ्रांतिमान
अलंकार (Bhrantiman Alankar)
जब एक जैसे दिखाई देने
के कारण एक वस्तु को दूसरी वस्तुव मान लिया जाता है या समानता के कारण किसी दूसरी
वस्तु् का भ्रम होता है तब इसे ‘भ्रातिमान अलंकार’
कहते है। (bhrantiman alankar ki paribhasha)
उदाहरण :
पाप
महावर देन को नाइन बैठी आय।
पुनि-पुनि
जान महावरी एड़ी मोड़ित जाय।।
यहाँ नाइन एड़ी की लालिमा को महावर समझकर भ्रम में पड़ जाती है, और सुन्दरी की एड़ी को मोड़ती जाती है। यहाँ पर भ्रांतिमान अलंकार है।
संदेह अलंकार
(Sandeh Alankar)
जब रूप,
रंग आदि के सादृश्य से जहां उपमेय में उपमान का संशय बना रहे या
उपमेय के लिए दिए गए उपमानों से संशय रहे, वहॉं ‘संदेह अलंकार’ होता है। (sandeh alankar ki paribhasha)
उदाहरण :
सारी
बीच नारी है कि नारी बीच सारी है।
सारी
ही की नारी है कि नारी ही की सारी है।
यहॉं साड़ी के बीच नारी
है या नारी के बीच साडी इसका निश्चय नहीं हो पाने के कारण सन्देह अलंकार है।
उभयालंकार
(ubhayalankar)
जहॉं शब्द व अर्थ दोनों
के कारण कविता में सौन्दर्य उत्पन्न होता है। वहाँ उभयालंकार होता है। इसके कोई
भेद नहीं है।
30 अलंकार
वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Alankar MCQ in hindi)
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1. 'तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर छाए' में कौन सा अलंकार अहि ?
2. 'चरण कमल बंदौ हरिराई' में कौन सा अलंकार है ?
3. चरर मरर खुल गए अरर रवस्फुटों से में कौन-सा अलंकार है ?
4. 'बड़े न हुजे गुनन बिनु विरद बड़ाई पाय। कहत धतूरे सों कनक, गहनो गढो न जाय।।' प्रस्तुत पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है ?
5. 'कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय। या खाए बौराए जग, वा पाए बौराए।' प्रस्तुत पंक्तियों में कौन सा अलंकार है ?
6. 'तीन बेर खाती थी वे तीन बेर खाती है' में कौन-सा अलंकार है ?
7. 'नवल सुन्दर श्याम शरीर' में कौन सा अलंकार है ?
8. दिवसावसान का समय मेघमय आसमान से उतर रही है वह संध्या-सुन्दरी परी सी धीरे-धीरे-धीरे। प्रस्तुत पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है ?
9. 'अब अलि रही गुलाब में, अपत कटीली डार' में कौन-सा अलंकार है ?
10. 'नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास इहि काल। अली कली ही सौं बिध्यौं, आगे कौन हवाल।।' प्रस्तुत पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है ?
11. अति मलीन वृषभानुकुमारी। अधोमुख रहित, उरध नहिं चितवत, ज्यों गथ हारे थकित जुआरी। छूटे चिहुर बदन कुम्हिलानो, ज्यों नलिनी हिमकर की मारी।। प्रस्तुत पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है ?
12. 'कबिरा सोई पीर है, जे जाने पर पीर। जे पर पीर न जानई, सो काफिर बेपीर।।' प्रस्तुत पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है ?
13. 'संदेसनि मधुवन-कूप भरे' में कौन-सा अलंकार है ?
14. 'ध्वनि-मयी कर के गिरि-कंदरा,कलित-कानन-केलि-निकुंज को।' प्रस्तुत पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है ?
15. 'पट-पीत मानहुं तड़ित रूचि, सुचि नौमि जनक सुतावर' में कौन-सा अलंकार है ?
16. 'रहिमन जो गति दीप की, कुल कपूत गति सोय। बारे उजियारै लगै, बढै अंधेरो होय।।' प्रस्तुत पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है ?
17. 'कुन्द इन्दु सन देह, उमा रमन वरुण अमन' में कौन-सा अलंकार है ?
18. 'भारत के सम भारत है' में कौन-सा अलंकार है ?
19. 'जहाँ बिना कारण के कार्य का होना पाया जाए' यहाँ कौन-सा अलंकार होता है ?
20. 'जहाँ उपमेय में अनेक उपमानों की शंका होती है' यहाँ कौन सा अलंकार होता है ?
21. 'पूत कपूत तो क्यों धन संचय द्य पूत सपूत तो क्यों धन संचय।।' प्रस्तुत पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है ?
22. जहाँ उपमेय का निषेध करने उपमान का आरोप किया जाता है वहां होता है
23. 'उसी तपस्वी से लंबे थे, देवदार दो चार खड़े।' इस पंक्ति में कौन-सा अलंकार है ?
24. 'बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना। कर बिनु करम करइ बिधि नाना।।' इस चौपाई में अलंकार है ?
25. किस पंक्ति में अपहृति अलंकार है ?
26. निम्नलिखित में कौन-सा शब्दालंकार नहीं है ?
27. "रहिमन जो गति दीप की,कुल कपूत गति सोय, बारे उजियारे करै, बढ़े अंधेरों होय।" में अलंकार बताईये।
28. "बीती विभावरी जाग री, अंबर-पनघट में डुबो रही तारा-घट ऊषा-नागरी।" में अलंकार बताईये।
29. "मो सम कौन कुटिल खल कामी।" में अलंकार बताईये।
30. "सूर सूर तुलसी ससि।" में अलंकार बताईये।
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